सिंहस्थ 2028: संतों के स्नान पर महा टकराव, आमने – सामने हुए महाकाल मंदिर के पुजारी और अखाड़ा परिषद; पुजारी बोले- “संतों को अलग घाटों पर भेजो!”, अखाड़ा परिषद बोली – “परंपरा से समझौता नहीं, श्रद्धालुओं के लिए तय हों अलग घाट!”

उज्जैन लाइव, उज्जैन, श्रुति घुरैया:
प्रयागराज महाकुंभ का समापन भले ही हो रहा हो, लेकिन उसकी भगदड़ और अव्यवस्था की गूंज उज्जैन तक पहुंच चुकी है। दरअसल, प्रयागराज महाकुंभ में हुई भगदड़, स्नान के दौरान उमड़ी बेकाबू भीड़, भगदड़ की आशंका और अव्यवस्था के भयावह दृश्य उज्जैन के संतों और प्रशासन के माथे पर पसीना ला चुके हैं।
इसी बीच अब उज्जैन के सिंहस्थ 2028 को लेकर चिंताएं और विवादों ने एक नया मोड़ ले लिया है। बता दें, सिंहस्थ 2028 में रामघाट पर होने वाली भीड़ को लेकर महाकाल मंदिर के पुजारी और अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष आमने-सामने हो गए हैं। महाकाल मंदिर के पुजारी महेश पुजारी ने भगदड़ से बचने के लिए साधु-संतों को अलग-अलग घाटों पर स्नान कराने का प्रस्ताव दिया, लेकिन अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रामेश्वर दास महाराज ने इसे परंपरा पर हमला करार दिया और कहा कि साधुओं को अलग-अलग घाट भेजने के बजाय जनता को अलग-अलग घाटों पर भेजने की व्यवस्था होनी चाहिए।
जानकारी के लिए बता दें, महाकाल मंदिर के पुजारी महेश पुजारी ने अमृत स्नान वाले दिन साधु-संतों को अलग-अलग घाटों पर बांटने का सुझाव दिया है। उनका कहना है कि उज्जैन में होने वाले कुम्भ में बड़नगर रोड की ओर शेव सम्प्रदाय और मंगलनाथ क्षेत्र में वैष्णव सम्प्रदाय के साधु-संतों का डेरा होता है। इसलिए वैष्णव के संतों को मंगलनाथ मंदिर के पास बने घाट या फिर सिद्धवट घाट पर स्नान करना चाहिए। वहीं शेव सम्प्रदाय से जुड़े साधु संतों को दत्त अखाड़े और अन्य घाटों पर स्नान करना चाहिए और ठीक इसी तरह अलग-अलग अखाड़ों को अलग घाट दिए जाने चाहिए। राम घाट पर सिर्फ आद्य शंकराचार्य की चार पीठों के शंकराचार्यों को ही शिप्रा में स्नान करने की इजाजत मिलनी चाहिए। इसके अलावा एक घंटे में सभी साधु संत स्नान कर लेंगे, जिससे जनता के लिए काफी समय बचेगा और भीड़ पर भी नियंत्रण रहेगा।
महेश पुजारी का मानना है कि अखाड़ों के संत बड़े जुलूस निकालते हैं, जो शहर से नदी तक जाते हैं, जिससे शहर में भीड़ बढ़ जाती है और भगदड़ जैसी स्थिति बनती है। ऐसे में पेशवाई पर भी रोक लगनी चाहिए। महेश पुजारी का कहना है कि अगर सरकार इस योजना पर ध्यान देगी, तो उज्जैन का कुंभ ऐतिहासिक बन जाएगा।
महेश पुजारी के बयान के बाद अब अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रामेश्वर दास महाराज ने सख्त प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा कि साधु-संतों की परंपराओं के खिलाफ कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। महंत रामेश्वर दास महाराज ने कहा कि यह मुमकिन नहीं है कि अखाड़े इधर-उधर स्नान करें। वैष्णव की पेशवाई स्नान के लिए निकलती है और वह खाक चौक से होते हुए रामघाट तक पहुंचती है। इस दौरान जनता भी संतों के दर्शन का लाभ उठाती है। भीड़ को संभालने के लिए साधुओं को अलग-अलग भेजने के बजाय, जनता को विभिन्न घाटों पर भेजने की व्यवस्था करनी चाहिए। उनके अनुसार, सिंहस्थ में आने वाली जनता को उनके रूट के हिसाब से अलग-अलग घाटों की ओर भेजा जाए।
महंत रामेश्वर दास ने साफ कर दिया है कि अखाड़े अपनी पारंपरिक पेशवाई के साथ रामघाट तक आएंगे और वहीं शाही स्नान करेंगे। यदि प्रशासन इसे रोकने की कोशिश करता है, तो संतों और सरकार के बीच बड़ा टकराव तय है।
अब सवाल यह है कि क्या उज्जैन सिंहस्थ 2028 में श्रद्धालुओं और साधु-संतों की आस्था सुरक्षित रहेगी, या फिर भीड़ नियंत्रण की योजनाएं परंपरा पर भारी पड़ेंगी?
गौरतलब हो कि कुछ समय पहले अखिल भारतीय पुजारी महासंघ ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को एक सख्त सुझाव पत्र भेजा था, जिसमें सिंहस्थ में अखाड़ों की पेशवाई पर रोक लगाने की मांग की गई है। साथ ही सिंहस्थ 2028 में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने की मांग की है। अखिल भारतीय पुजारी महासंघ के अध्यक्ष महेश पुजारी ने कहा था कि इस बार अखाड़ों की पेशवाई को पूरी तरह से बंद कर दिया जाए और संतों को साधारण रूप से स्नान करने भेजा जाए। साथ ही उन्होंने यह भी सुझाव दिया है कि क्षिप्रा के हर घाट को रामघाट की तरह पवित्र माना जाता है, ऐसे में सभी तेरह अखाड़ों के लिए अलग-अलग घाट निर्धारित किए जाएं। इससे घाटों पर भीड़ नहीं बढ़ेगी, स्नान सुगमता से होगा और भगदड़ जैसी घटनाओं से बचा जा सकेगा।